रातें गईं सुहानी
आधार छंद दिग्पाल
गीतिका —
बिसरे नही तुम्हें हम,यादें अभी पुरानी ।
तुमने भुला दिया जो,घडियाँ बनी कहानी ।
मन में नहीं दुराशा, गाते रहे तराने,
मुझको सजा मिली क्यों,रातें गयीं सुहानी ।
देते रहे सजा तुम,रातें कटे न दिन वे,
उनको रही सजाये,ढलती गयी जवानी ।
पलभर न चैन आये,बातें लगीं अजब सी,
सजते रहे नजारे, सदियाँ हुईं रवानी ।
पथ प्रेम का सहज ये,मंथन करें सभी मिल,
शुचिता भरें हृदय में,करिए नहीं अमानी ।
————————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी