किनारा नहीं
गीतिका-
नदी वह कहाँ वेग धारा नहीं ।
न पतवार हाथों किनारा नहीं ।
बिगाड़ा तुम्हीं ने बनाना तुम्हें,
यही सोच उनको गँवारा नहीं।
सतत हो मनन पर लगन चाहिए,
कठिन हो भले ज्ञान हारा नहीं ।
किरण भोर आभा जगाती सदा,
अलस खो रहा दिन सँवारा नहीं ।
जलाया नहीं स्नेह का दीप मन में
विकल श्वांस चलती सहारा नहीं ।
कली से कुसुम कुंज महके कहाँ,
मिले जो मधुप मीत प्यारा नहीं ।
निभाते अगर प्रेम को मान दे,
न कहते किसी ने पुकारा नहीं ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
आधार छन्द- शक्ति (मापनियुक्त वाचिक)
वाचिक मापनी- १२२,१२२,१२२,१२
समान्त- आरा, पदान्त- नहीं।