
“शुभ-शुभ बोलो माँ कहती”
बाल-गीत
भोला बचपन समझ न पाया,शुभ-शुभ बोलो मांँ कहती ।
देख गगन से टूटा तारा, अनहोनी से जो डरती ।
बिजली चमके ज्यों घन गरजे,
झम-झम ओले बरसे,
गहन अंँधेरे से डर जाए,
बंद करे खिड़की डर से ।
सन-सन चलती तेज हवाएं,शुभ-शुभ बोलो मांँ कहती ।
देख गगन से टूटा तारा,, अनहोनी से जो डरती ।
कभी न जाना सूनी राहें,
किस्से दादी नानी से ।
घड़ी अशुभ की कभी न आए,
अपनी ही नादानी से ।
चढ़े न हम पर काला जादू,शुभ-शुभ बोलो मांँ कहती ।
देख गगन से टूटा तारा, अनहोनी से जो डरती ।
काला धागा बाँध कलाई,
सभी बलाएं जो हर ले।
प्रेम भरा संसार मिलेगा,
सदा दुआएं संबल दे ।
नेह नयन की भाषा समझे,शुभ-शुभ बोलो मांँ कहती
देख गगन से टूटा तारा, अनहोनी से जो डरती ।
————————-+डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
