शिशिर गए हेमंत
गीत
शीत समायी अंग-अंग में, गर्म हुए बाजार।
बाल-वृद्ध को अलग सताए, सुने नहीं दातार।।
सन-सन चलती हवा कँपाए,
ठिठुरन झेले पात ।
आर-पार की खड़ी लड़ाई,
सहते सब संघात ।।
धुंध धुँआरे पथ को घेरे, शीतल पड़े फुहार ।
शीत समायी अंग-अंग में, गर्म हुए बाजार।।
रवि किरणें निस्तेज हो रहीं,
शिशिर गए हेमंत ।
हाड़ कँपाती ठंड हठीली,
भर दे भाव अनंत ।।
प्रीति प्रतीति लगे अलाव सम, विरहन के उद्गार ।
शीत समायी अंग-अंग में, गर्म हुए बाजार।।
पत्र-पत्र पर मुक्ता बनकर,
बिछी ओस की बूंद ।
पंखों की हलचल में सोई
चुनमुन आँखे मूंद ।।
छिपे लगे शाखों में छौने, प्यारा यह संसार।
शीत समायी अंग-अंग में, गर्म हुए बाजार।।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी


