“विविध रंग की सजी काँवरी”
#गीत
प्रतिपल सुख-दुख उलझन अपने,सुलझे नितअनुपात रहे।
सुयोग-वियोग मिल-जुल अपने,प्रात सुखद हर रात रहे।
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करुण हृदय हो सहज वेदना,
थाती ये अनमोल जहाँ।
नश्वर काया श्वास भरे जो,
मिली हमें है तोल यहाँ।
खोना मत अवसर को साथी, चाहे जो हालात रहे।
प्रतिपल सुख-दुख उलझन अपने,सुलझे नित अनुपात रहे।
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शतरंजी बाजी यह जीवन,
हार जीत का है खेला।
नियति कठोर सरल तो निश्चित
अभिनय का नित्य झमेला।
अगणित रूप धरे हम प्यादे, व्यर्थ नहीं अपघात रहे।
प्रतिपल सुख-दुख उलझन अपने,सुलझे नित अनुपात रहे।
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विविध रंग की सजी काँवरी,
नेह भरे हम व्योम अदृश ।
सहज लगे दिन रैन सबेरा,
मात-पिता के प्रेम सदृश ।
“लता” सघन उम्मीद न छोड़ें,मृदु भीना सौगात रहे।
प्रतिपल सुख-दुख उलझन अपने,सुलझे नित अनुपात रहे।
** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी


