 
	सच्चाई स्वीकार करें
गीत
मान सभी को प्यारा है पर,  झूठे हैं उपमान सभी ।
क्या मांँगे हम मदद जगत से,बन बैठे अनजान सभी।
           काँधे जिसके झुके बोझ से,
            उसका अपना कौन यहांँ ।
            नये दौर की बात निराली,
             बढ़े मदद को हाथ कहाँ ।
पीर पराई कहकर अपनी, खोती है पहचान सभी।
क्या मांँगे हम मदद जगत से,बन बैठे अनजान सभी।
            पथ पर बिखरे काँटे फिर भी,
            कभी न हम पर वार करें।
            अपनों में ही छिपे पराए,
              सच्चाई स्वीकार करें।
 खो देते हैं पलभर में जो, दीन-धर्म ईमान सभी।
 क्या मांँगे हम मदद जगत से,बन बैठे अनजान सभी।
             कथनी-करनी में अंतर से,
              नाते लगते मतलब के।
              विरले होते संघर्षों में,
              सदा सहाई विप्लव के।
सत्य समर्पण संवेदन की, ‘लता’मिले उपदान सभी ।
क्या मांँगे हम मदद जगत से,बन बैठे अनजान सभी ।
———————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
 
	 
	
			
			

