
लिखे लेखनी जंग
गीत ———
धुंंध-धुंध औ धुंध,प्रलय का पहने बाना ।
धर्म-कर्म सुविचार,कृत्रिम जाना-पहचाना ।
लख चौरासी योनि
शीर्ष मानव तनधारी ।
भरे विकट उन्माद,
करें दुःखी व्यभिचारी ।
भोगी तन-मन तंत्र, दीन नैतिकता चादर,
अँखियाँ जाती भीग तड़प का दे नजराना ।
तिल-तिल घटता प्राण,
जगा करती कुंठाएं
बदली नहीं अनाम,
दशा-किस्मत-रेखायें
सिहरे तरुवर पात,निशा अलाव बन जागे,
घुल जाता जब धैर्य, बुनेगा गीत सयाना ।
लिखे लेखनी जंग
हुए क्यों तंग झरोखे ।
जीवन के सब रंग
दर्द जी रहे अनोखे ।
टूट चुके हिय बांध, पीड़ा न हृदय समाए,
छिड़ा जंग संगीन, चुने ये विकल तराना ।
———– डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
