
साँच को आंच नहीं बावरे
_गीत
नीति रीति का करें समर्थन,मिट जाये टकराव ।
आपस की कटुता को मेटे, प्रेम समर्पण भाव ।
विश्व मंच से पाप-पुण्य के, मुद्दे उठे हजार,
दिया समर्थन दोषी को यदि,दोषी स्वयं करार।
अपनी क्षमता स्वयं आँकिए, बिना शस्त्र भगवान,
भरी अदालत सिद्ध न होता,गवाह बिना दबाव।
विनाश काले विपरीत बुद्धि, स्वयं डुबाती नाव।
———————- प्रेम समर्पण भाव ।
पीर न कोई झूठी होती,पाप करे क्यों राज,
अपराधों के बोझ तले जब,दबी मनुजता आज।
भगवन तेरी दुनिया में ये,जन्में कैसे ? लोग,
कुटिल निरंकुश की अपघातें,उनके बीच चुनाव।
नर-नारी के सपने रिश्ते; बनते रिसते घाव ।
———————- प्रेम समर्पण भाव ।
विश्व-युद्ध की आशंका है, सुप्त जगाएं बोध।
राष्ट्र-हितों में चिंतन-मंथन,निश्चित इस पर शोध।
सत्य-सहारा सदा साथ हो,हार न कोई जीत,
साँच को आँच नहीं बावरे, उसका रहे प्रभाव ।
आपस की कटुता को मेटे,प्रेम समर्पण भाव ।
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आधार छंद-सरसी
विधान-27 मात्रायें-16,11यति ,चरणांत-2 1(गा ल)
– चौपाई+दोहा सम चरण
*डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
संस्कृत साहित्याचार्य
* लखनऊ उत्तर प्रदेश
* 226016
* दूरभाष 8787009925,9415301217
