
“प्रेम पथिक की ठाँव”
निशा दिवस की दिव्य रश्मियाँ,ऋतुओं का श्रृंगार ।
रामनाम का पावन दर्शन । संग सजा संसार ।
हँसता गाता बचपन-यौवन,
नित अपनों का साथ ।
नेक राह पर चलना सुंदर,
संगति देते हाथ ।
तृषाजगत हित सदा लुभाए,भूख न हो व्यापार ।
रामनाम का पावन दर्शन, संग सजा संसार ।
सोच रही हूँ रातें कितनी,
बीती सुबहो शाम ।
साधक तन-मन महकी बगिया,
संचित जो निष्काम ।
छाया पेड़ खजूर न देता, अहं खड़ा लाचार ।
रामनाम का पावन दर्शन, संग सजा संसार ।
क्या खोया क्या पाया हमने,
प्रेम पथिक की ठाँव ।
डूब रही कागज की नौका,
सह न सकी जो दाँव ।
उम्र हो गई तकते साथी,
कहाँ गया वह प्यार ।
रामनाम का पावन दर्शन ।
संग सजा संसार ।
—————–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
