#चला कारवां
#गीत
देख सुनहरी आभा पिय की,अनुपम ताना-बाना ।
सांझ सुरमई सुरम्य वादी, छेड़े नवल तराना ।
उदय-अस्त का सुन्दर सरगम,
पथिक निराला झूमें ।
कंचन वर्णी क्षितिज साधना,
धरा गगन को चूमें ।
बिखरी लाली अरुणिम अंचल,सुरभित सुखद सुहाना ।
सांझ सुरमई सुरम्य वादी, छेड़े नवल तराना ।
छलक उठी है लौह भस्म सी,
उर्जित रवि की गागर ।
भुवन विजेता भगवा पहने,
सत्य-शील सुख सागर।
शंखनाद से गूंजे परिसर, तोरण फहरे नाना ।
सांझ सुरमई सुरम्य वादी, छेड़े नवल तराना ।
पुलकित खिलते कमल सरोवर,
मन मराल मन-मोहित ।
दिव्य ज्योति प्राची से पश्चिम,
रश्मि पुंज तन शोभित ।
चला कांरवा पंथ संगमित,दूर देश है जाना ।
सांझ सुरमई सुरम्य वादी, छेड़े नवल तराना ।
———————–डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी