“आओ आज सँवारे”
#गीत (आज का परिदृश्य)
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कल किसने देखा है साथी, आओ आज सँवारे ।,
चिंतन के सब तर्क अधूरे , कहते आँसू खारे ।
डोर कहीं बुझती सांसों की
सोया हुआ सबेरा ।
दीप जलाना भूल गए हम,
जागृत हुआ अँधेरा ।
इन नयनों की चाहत रखना,वश में नहीं हमारे ।
चिंतन के सब तर्क अधूरे , कहते आँसू खारे ।
नहीं असंभव कुछ भी बंधू,
सोच समझ कर बढ़ना ।
विश्वयुद्ध की ओर बढ़े सब,
बैठे लेकर धरना ।
लगभग सबकुछ देख लिया है,जीत लिए क्या हारे ।
चिंतन के सब तर्क अधूरे, कहते आँसू खारे ।
शहर,गांव,गलियों थारों के,
किस्से सुनिए अनगिन ।
टूट पड़ा है जनमानस अब,
तार-तार होता पलछिन ।
कठिन समय क्या पार करेंगे,धीरज हृदय न धारे ।
चिंतन के सब तर्क अधूरे,कहते आँसू खारे ।
————–डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी