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“तोय तुमुल तट तटिनी से”
माह सावन को समर्पित । #गीत आया सावन मनभावन , पात-पात हरषे मुकुलित। नयन सुभग आतुर चितवन,प्रीत भरी कलिका अन्वित । आस जगी पग नूपुर की , ठुमक उठी मन की डाली । दे संदेशा विरहन को, ज्यों तीन ताल भूपाली । सुर लिए कहरवा टिप-टिप,नृत्य करे बरखा पुलकित । आया सावन मनभावन , पात पात हरषे मुकुलित । पहन धरा चूनर धानी ग्राम्य वधू सरसी हरषीं । भरी कलाई खनक उठी, कर हरी चूड़ियाँ हुलसीं । तोय तुमुल तट तटिनी से ,उफन-उफन होतीं गर्वित । आया सावन मनभावन , पात-पात हरषे मुकुलित । #लता सुहाए मास-दिवस, झूले सखियाँ तरु छैंया । शिव आराधन पर्व सहित, चले मिलन को पुरवैया…
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“बेल पत्र के त्रिगुण भाव से “
#गीत शिवत्व महिमा लेकर आया, सावन पहने चोला । संतों की आहुति से दिशि-दिशि,पूज्य हुए शिवभोला । महकी समिधा भीनी-भीनी, मंत्रों से मनभावन । आक पुष्प से शंभु सुहाए, गौरी के प्रिय पावन । दूध-पूत से धरा नहाई, खुशियों से मन डोला । शिवत्व महिमा लेकर आया,सावन पहने चोला । पंचगव्य से आँगन-आँगन, गमक उठे तन चंदन । कुमकुम बेंदी माथ सुहाए, सजनी करती वंदन । अनहद गूँजे गीत सावनी, झाँझर बाजे टोला । शिवत्व महिमा लेकर आया,सावन पहने चोला । लता-प्रेम की ढुरि-ढुरि गाए, मृदु जीवन संसारी । “बेल पत्र के त्रिगुण भाव से, प्रिय! भोले भंडारी। कजली,तीजा पर्व सावनी, साजे लगन तमोला । शिवत्व महिमा लेकर आया,सावन पहने…
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“गुरु बिन कौन सँवारे”
#गीत जल में थल में धरा गगन में,गुरु बिन कौन सँवारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । मरकत मणिमय निहित सरोवर, किरण प्रभा छवि गुंफित । सुखद सलोनी आभा अविरल, पात-पात पर टंकित। निखर उठा है पंकिल तन ये,मुकुलित नैन निहारे । जल में थल में धरा गगन में,गुरु बिन कौन सँवारे । मीन उलझती रही निरापद, शैवालों में खेले । सरसिज काया मदमाती यों, अगणित बाधा झेले। सतह-सतह पर कुटिल मछेरे,बगुले हिय के कारे । जल में थल में धरा गगन में,गुरु बिन कौन सँवारे । लता सीख देती ये कणिका, मन को करें न दूषित। धर्म नीति भावों की सरिता, निश्चित होगी भूषित । नया…
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धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया –
गीत —– —- धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया । मदन बाण तरकश लेकर संँवरिया —- चंचल बयरिया सजन मन भावै। सुध-बुध छीनै ये जिया तड़पावै । अँगना में बोलै सुगन हरजाई । छल-छल छलके है काँधे गगरिया, धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——-। सतरंगी आभा किरण बगरा के । इंद्र-धनुष जो तना गहरा के । कटि बलखावे बावरो पग नूपुर, चैन कहाँ पावै अनहद गुजरिया । धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——–। दर्पण देखत शृंगार मनभाए । रंग पिया मोहे चटक हुलसाए । लौंग सुपारी के वीड़ा अधर ज्यों, यौवन की आई खड़ी दुपहरिया धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया —–। ———-डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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“पावस झरे”
#गीत बरखा सावन भाये प्रियतम साँसों को महका रही । लगा डिठौना कारी बदरी पग घूँघर ठुमका रही । #गीत बढ़ी तृषा हिय हुलसित गाए, होनी हो अनहद भले । करें दिग्भ्रमित घाट-पाट ये, अनहोनी हर बार टले । मौसम की मनुहार करे मन कँगना जो खनका रही । जादू टोना काम न आये , मन मयूर छन-छन करे , शाख-शाख पर कूक सुहाए रिमझिम जब पावस झरे । नृत्य सुखद यह भाव-भंगिमा , सजनी कटि मटका रही ——— डॉ प्रेमलता त्रिपाठी