ध्रुवक साधना
#गीत
(छंद सरसी)
धवल चँद्रिका शरद चंद्र की,अनुपम रूप मयंक।
अंबर का शृंगार तुम्ही से, श्वेत स्वच्छ अकलंक ।
रंग भरे सपनों की कलशी,
सजी तारिका नेक ।
ध्रुवक¹ साधना छंद सृजन के ,
भाव भरे अतिरेक ।
दर्शन दुर्लभ तीज-चौथ के,साधक उत्कट बंक² ।
अंबर का शृंगार तुम्ही से,श्वेत स्वच्छ अकलंक ।
झरे बूँद रिमझिम तुषार के,
सुखदा कांति विशेष,
अमिय कमंडल लेकर आये,
तृषा मिटी अनिमेष ।
शुभ्र वेश उन्मेष सजाये, चातक लगे सशंक ।
अंबर का शृंगार तुम्ही से,श्वेत स्वच्छ अकलंक ।
साज सरस से छेड़ रागिनी,
रीझे शारद विज्ञ,
जगा रही ज्यों अलख ज्योत्सना,
अनुरागी अनभिज्ञ ।
वश में अपने कर लेती जो, राजा हो या रंक ।
अंबर का शृंगार तुम्ही से,श्वेत स्वच्छ अकलंक ।
————————-डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
ध्रुवक¹=(सं.) [सं-पु.] 1. किसी गीत का वह आरंभिक अंश जो बार-बार दुहराया जाता है; टेक 2.
बंक²=(सं.) [वि.] 1. तिरछा; टेढ़ा 2. विकट; दुर्गम 3. जिसमें पुरुषार्थ और विक्रम हो।