“मधुशाला जीवन की”
गीत – मधुर / मनोरम
—————————–
स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,
मधुशाला जीवन की।
किस्से सुख दुख अनगिन जिसमें,
हम प्याला जीवन की ।
गुन गुन करती वीणा समरस,
श्वासों में रस घोले ।
स्याम रंग में लिखे लेखनी
कुंज-कुंज में डोले ।
हँस हँस मिलना है अनंत में,जप माला जीवन की ।
स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की।
पीड़ा मन की मुक्ता माणिक,
शब्द शब्द रचवाए ।
जलना खपना इस दीर्घा में,
मंचन जगत लुभाए ।
संचालक बनना केवल तो, मद हाला जीवन की ।
स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की।
आज नहीं तो कल सच होगा,
कुछ हारे कुछ जीते ।
खींची रेखा मिली जुली पर,
कितने सावन बीते।
प्रेम मनोहर सरगम जिसमें,धुन #गाला जीवन की ।
स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की।
———————————डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
#गाला
[सं-पु.] 1. धुनी हुई रुई का पहल जो चरखे पर सूत कातने के लिए बनाया जाता है; पूनी 2. रुई का टुकड़ा जो हलके होने के कारण हवा में इधर-उधर उड़ जाता है।
One Comment
डॉ। प्रेम लता त्रिपाठी
संशोधित गीत 2