-
“मुस्करा प्रभा उठी”
#गीत दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । मुस्करा प्रभा उठी कली-कली खिला रही । लालिमा विहान की दिगंत में मिला रही । पंक्तियाँ विहंग की मगन-गगन विहारतीं । भावना नहीं अलस प्रभात को निखारतीं । दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । हिंद है अखंड आन-मान को सँवारिए । हार -जीत राग-द्वेष पुण्य से न हारिए । कष्ट शीत द्वंद्व या बयार से उबारतीं । रश्मियाँ सदैव भेदभाव को नकारतीं । दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । प्राणवान हो सदा सहर्ष कर्म आप से । कष्ट व्याधि हो नहीं समाज धर्म आप से । वृद्ध बाल वृंद से युवान को सँवारतीं । प्रेम सत्य मार्ग हो कुव्याधि नित्य…
-
“मुस्करा प्रभा उठी”
#गीत दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । मुस्करा प्रभा उठी कली-कली खिला रही । लालिमा विहान की दिगंत में मिला रही । पंक्तियाँ विहंग की मगन-गगन विहारतीं । भावना नहीं अलस प्रभात को निखारतीं । दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । हिंद है अखंड आन-मान को सँवारिए । हार -जीत राग-द्वेष पुण्य से न हारिए । कष्ट शीत द्वंद्व या बयार से उबारतीं । रश्मियाँ सदैव भेदभाव को नकारतीं । दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । प्राणवान हो सदा सहर्ष कर्म आप से । कष्ट व्याधि हो नहीं समाज धर्म आप से । वृद्ध बाल वृंद से युवान को सँवारतीं । प्रेम सत्य मार्ग हो कुव्याधि नित्य…
-
चिंतन हो पर दुश्चिंताएँ —
#गीत चिंतन हो पर दुश्चिंताएँ — कह दो उनसे पास न आए । कितनी गहरी अर्थ भरी हो, बातें जिन की खास सुहाए । छीना जिसने जग की खुशियाँ निशा घुली अरमानों वाली । दे न सकी जो नेह निमंत्रण, सूनी सेज रही जो खाली । लिखते गये पृष्ठ अतीत के, बैठी उन्मन रास न आए । यादें मीठी बातें उनकी सपने वे जो लगे किनारे । देकर दर्द न जाये रैना, उनको प्रतिपल रही सँवारे ढूँढ रही मंजिल अपनी जो नयी नज्म विश्वास जगाए । निष्ठुर जग की रीति निभाना धड़कन छीने चिंता घाती, साथ चले अनुकूल नहीं ये, जिसको कहते अपनी थाती ‘लता ‘हृदय से भेद मिटा दो-,…
-
कहती ग्वालन राधिका
#गीत श्याम प्रीत की डोर सँभालो, कहती ग्वालन राधिका । पीर हरो पिय,आकर मेरी, पुष्पित हो उरमालिका । मधुर बाँसुरी सुन मन रीझे,रहूँ तुम्हारी साधिका । भर दो सुर लय ताल साँवरे सरस भाव अमृत पावन । बाट जोहती प्रिया तुम्हारी, मधुबन सखा घन सावन । भटक रही तनु श्यामल गोरी, धेनु सकल विकल कानन । ढूँढ रही हैं वन-वन तुमको, श्यामा कृष्णा सारिका । मधुर बाँसुरी सुन मन रीझे, रहूँ तुम्हारी साधिका । कल-कल बहती यमुना गह्वर, तट तारिणी हरि माया । लहर लहर पर छाप तुम्हारी, कदंब हरित की छाया । द्वेष भूल हे ! नटवर नागर- नाग कालि को भरमाया । गगनांचल से पुष्प झरे ज्यों, चमक…
-
रश्मि रथी प्रतिपाल
गीत- कर्म विलसता जीवन तपकर,देकर हमें मिसाल । जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल । *लक्ष्य बिना फिर जीना कैसा, मौन रहा आधार । मधु पराग रस सिञ्चित क्यारी, मधुकर पद सञ्चार । शून्य गगन औ धरा बीच हम,सभी घिरे भ्रमजाल । जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल । *पालन करता स्वयं विधाता, कर्म हमारे हाथ । जीवन माला हरिनाम सखे, कृपा ईश जग साथ । विपुल संपदा मानव तन-मन,हम हैं माला माल । जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल । *नेक साधना हाथों में फिर, भाग्य कहाँ अनजान, विविध कर्म माया नगरी में, सच की कर पहचान, धैर्य साध बढ़ते जाना मत,भाग्य भरोसे टाल । जीवन…
-
“चीर झरे तन पर सदरी”
आधार छंद- लावणी #गीत स्नेह सिक्त भावों से भीगे,तन-मन अंतर देखें हैं । माँ की कृपा सिंधु से उभरे,मुक्ता अक्षर देखें हैं । *वाणी को जो तीर बनाते, धार बहुत इनमें होती । खिले वाटिका फूल जहाँ पर, आखर-आखर हों मोती । छुपे हुए सर्पो के दल-बल,दीन-धर्म को जो खोकर, घायल करते कृत्य कथन से,डसते विषधर देखेहैं। *कंपित रग-रग शीत लहर से, ठिठुरे हारे जन पथ पर । बजे दंत हैं दुंदुभि जैसे, रवि वर आओ तुम रथ पर। पतझर भी मधुमासी भाये,छँट जाये मोह पाश जो, मृत्यु आवरण धुंध कहर से,घिरते अक्सर देखें हैं। *हरित क्रांति से झूमें सरसों, अलसी निखरे खेत जहाँ । चले नहीं अब हवा पश्चिमी,…
-
चीर झरे तन पर सदरी
आधार छंद- लावणी #गीत स्नेह सिक्त भावों से भीगे,तन-मन अंतर देखें हैं । माँ की कृपा सिंधु से उभरे,मुक्ता अक्षर देखें हैं । *वाणी को जो तीर बनाते, धार बहुत इनमें होती । खिले वाटिका फूल जहाँ पर, आखर-आखर हों मोती । छुपे हुए सर्पो के दल-बल,दीन-धर्म को जो खोकर, घायल करते कृत्य कथन से,डसते विषधर देखेहैं। *कंपित रग-रग शीत लहर से, ठिठुरे हारे जन पथ पर । बजे दंत हैं दुंदुभि जैसे, रवि वर आओ तुम रथ पर। पतझर भी मधुमासी भाये,छँट जाये मोह पाश जो, मृत्यु आवरण धुंध कहर से,घिरते अक्सर देखें हैं। *हरित क्रांति से झूमें सरसों, अलसी निखरे खेत जहाँ । चले नहीं अब हवा पश्चिमी,…