“आभार जीवन हो”
गीतिका —-
आधार छन्द – माधुरी
2212 2212 2212 22
पदान्त-जीवन हो, समान्त-आर
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माँ शारदे आशीष दें, अविकार जीवन हो।
छलछद्म को मौका न दें,अधिकार जीवन हो ।
आये कहीं जो द्वार पर, भूखा नहीं लौटे,
इतनी कृपा मुझ पर करें,उपकार जीवन हो ।
हो अर्चना अपनी सफल,मन से मिले मन यूँ,
मतभेद मन के सब मिटे, त्योहार जीवन हो ।
अनुकूल हो कर शांत रस,दृग ज्योति भर दे माँ ,
माधुर्य लेखन कामना, आधार जीवन हो ।
माया जगत व्यापे नहीं,नैया तरेगी प्रभु,
रिपुवंश का संहार कर,आभार जीवन हो ।
अर्पण लिए पूजा फले, संघर्ष करना हो,
सच राह से मुकरें नहीं, शृंगार जीवन हो ।
याचक रहे मन प्रेम का,करुणा सरल हिय से,
अभिमान अंतस का मिटे,भव पार जीवन हो ।
——————डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी