आधार चिंतन
आधार छन्द – हरिगीतिका (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- 2212 2212 2212 2212
समांत – आते <> पदांत – हम चलें
गीतिका —
वसुधा सजे शुभ कर्म से पथ को सजाते हम चलें ।
सुंदर हमारी हर विधा नित गुनगुनाते हम चलें ।
कविता चुनेगी पथ वही आधार चिंतन हो जहाँ,
शुचि भक्ति गणपति साधना नवधा बनाते हम चलें ।
मायूस होकर दर्द सह हासिल न होगा कुछ कभी,
संग्राम करते पथ सदा बाधा मिटाते हम चलें ।
फागुन वही मौसम सखे खुशियाँ लुटाकर देखिए,
है रंग जीवन के बहुत तन मन डुबाते हम चलें ।
हर भावना को लेखनी देती सदा सम्मान जब,
राहें बुलातीं प्रेम प्रतिपल पग बढा़ते हम चलें ।
——————— डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी