दृग झरना सीख
गीतिका
ज्योति जलेगी स्नेह तरल नित,भरना सीख ।
करुण सदय हो निर्झरिणी दृग,झरना सीख ।
दूषित करते पावन नद को, गिरते क्षार ,
दोष रहित जल सुरसरि निर्मल,करना सीख।
महक उठे निष्कंटक पथ हो,चल कर साथ,
सुमन पथी तू सुरभित हो मन,हरना सीख ।
नवल चेतना भर ले तन-मन,गायें गीत
चरैवेति सिद्धांत सहज है, चरना सीख,
साहस खोकर जीवन कैसा,सुख-दुख भोग,
काया तो क्षणभंगुर है मत, डरना सीख ।
सेवा कर पितु मातु हितों की,मिलता पुण्य,
सतत कर्म रत भव सागर से,तरना सीख ।
भ्रमर गूँज से खिली वाटिका,महके प्रेम,
अनुयायी सौरभ का बन पग,धरना सीख ।
———– डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी