‘ईर्ष्या से कटे न जीवन’
छंद- सखी /आँसू
गीतिका
आँसू नहीं सुहाया है ।
नित्य अधर ने गाया है ।
प्राच्य दिशा है मनहारी,
रवि ने सरस लुभाया है ।
वसुधा का पावन अंचल,
माँ की ही प्रति छाया है ।
मधु कोष भरें क्यारी हम,
कलियों ने समझाया है ।
शुद्ध चित्त इष्ट- साधना,
मन अनंत सुख पाया है ।
निर्मोही जग ने केवल,
मन को नित भरमाया है ।
ईर्ष्या से कटे न जीवन,
प्रेमिल जगत बनाया है ।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी