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सूर्य तो उगा सखे
प्रदत्त छंद-चामर (वर्णिक) 21,21,21,21,21,21,21,2 समान्त: अगापदान्त: सखे गीतिका हार मानना न मौत को गले लगा सखे । भाग्य वान हो अहो सुभोर को जगा सखे । है अतीव वेदना विराग क्षोभ मानिए , दे रहा अकाल ये कराल क्यों दगा सखे । दौर आ गया समक्ष साहसी बने स्वयं, भेद भाव आपसी दुराव को भगा सखे । दूरियाँ भले रहें न बाँटिए समाज को, एक देश एक राष्ट्र गीत मंत्र गा सखे । एकता बनी रहे पुनीत राष्ट्र भावना, भाव दीप्त यों रहे भले न हो सगा सखे । द्वंद्व तो अनेक हैं मिटा सके न नेह को भूल ये सभी गिले खुशी सभी मँगा सखे । प्रेम की प्रगाढ़ता…
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अमा की रात झंझावात है —
आधार छंद – ‘ आनंदवर्धक छंद ‘ मापनी – 2122 2122 212 समांत – ‘ आत ‘ , पदांत – ‘ है ‘ . ***************************** गीतिका:- हो उठी जागृत सुहानी रात है। मौन तारे भी करें जब बात है । टिमटिमाते जुगनुओं की पंक्तियां, है अमा की रात झंझावात है । दर्द रिश्तों में जहाँ मिलता रहा, प्रीति खाती नित वहीं तब मात है। पास आकर भी नहीं मंजिल मिली, यह समय का जानिए अप घात है । सत्य की राहें अडिग हैं मानिए , बात इतनी जो सभी को ज्ञात है । है प्रतीक्षा की घड़ी नाजुक बड़ी, रात्रि का अवसान देता प्रात है । गुनगुनाये शून्य भी यह…
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सींच दे आरोह को
छंद गीतिका मापनी : 2122,2122,2122,212 मुक्तक—- जी रहा हर व्यक्ति क्यों कर,दर्द लेकर द्रोह को । कर्म सुंदर साथ हो तू, छोड़ माया मोह को । सारथी बन कर मिलेगें,श्याम सुंदर आज भी, शोध जागृत कर सयाने, मूल में संदोह को । गंध चंदन भाव अर्पण, की जरूरत हैं यहाँ, दो महकने नित्य जीवन,खो न देना छोह को । दुख निराशा की घडी़ में,भोर बन कर जागना, एक दूजे के लिए बन,राह संबल टोह को । दर्द को कह अलविदा तू,मीत मेरे इस समय, प्रेम की जो बेल उसको,सींच दे आरोह को । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी