चाहते हैं बहुत
गीतिका
आधार छंद – वाचिक स्रग्विणी
मापनी – 212 ,212 ,212, 212
समांत – आते ,पदांत नहीं
चाहते हैं बहुत बस दिखाते नहीं ।
बुद्ध की यह धरा भूल पाते नहीं ।
देश उत्थान में हम बढ़े हर डगर,
शीश उन्नत रहे हम झुकाते नहीं ।
प्राण आतंक से भीत क्यों अब रहे,
राष्ट्र हित दीप को हम बुझाते नहीं ।
गीत गाते अधर गुनगुनाते रहें ,
लेखनी की लगन हम घटाते नहीं ।
कारवाँ प्रीत का हम बढ़ा यों चलें ।
पीर आँसू बना कर बहाते नहीं ।
गर्व से भर उठे मन खुशी से जहाँ,
प्रेम कोई कमीं हम दिखाते नहीं ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी