मेघ मनुहार
गीतिका
आधार छंद — वाचिक जतरगा
मापनी — 12122 12122
समान्त – आर<>पदांत – बादल
सुनो धरा की पुकार बादल ।
किसान का हित विचार बादल ।
बुझा सके प्यास जो नहीं अब,
हृदय किसी का उदार बादल ।
छिपी न तुमसे व्यथा जगत की,
विकल भरा मन गुबार बादल ।
धरा सजेगी विकास होगा,
भरो सुखद तुम फुहार बादल ।
महक उठेगी प्रफुल्ल क्यारी,
तुम्हीं बुलाते बयार बादल ।
न आँसुओं की लड़ी सुहाती,
दुखी मनुजता सँवार बादल ।
प्रलय न आए उदास मन है,
मधुर बजा दो सितार बादल
सुमन सरोवर सुहास देना,
सप्रेम बरखा बहार बादल ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी