माँ
गीतिका (12 मई अन्तराष्ट्रीय मातृ दिवस)
छन्द:-द्विगुणित चौपाई
16 यति 16 आरम्भ में द्विकल+त्रिकल+त्रिकल वर्जित
अन्त में गुरु अनिवार्य
तन मन जीवन प्रीति सुहाती,सुख दुख करुणा प्राण लुटाती ।
साँसों की सरगम बन जाती,परम आत्मना माँ कहलाती ।
जब जब जीव धरा पर आया,अंकुर बन वह जीवन पाया,
पलकें खुलते गले लगाती,परम आत्मना माँ कहलाती ।
शीतल होती उसकी छाया,सदा सँवारे नख शिख काया,
मन को वह हरपल हर्षाती,परम आत्मना माँ कहलाती ।
छवि जिसकी कण कण में पाया,पंचतत्व बन देह समाया,
अंक भरे जो क्षीर पिलाती,परम आत्मना माँ कहलाती ।
रातों की निंदिया बनजाती,भावों की लोरी हो जाती ,
प्रथम गुरु बन दिशा दिखाती,परम आत्मना माँ कहलाती ।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी