साथ अपनों का
गीतिका
हृदय में तुम रहो मेरे नहीं इतना सताया कर ।
दुआएँ दे दवा देकर न यूँ मुझको जिलाया कर ।
मिला जो घाव शब्दों का नहीं भूली अभी तक मैं ।
सही जाती नहीं घातें नहीं बातें बनाया कर ।
भरोसा तोड़ कर तुमने कहाँ अच्छा किया सोचो,
दिया क्यों दर्द अपनों को तनिक खुद तो लजाया कर ।
लगन मेरी न समझे तुम कहीं यह दर्द बन जाए,
दिलासा झूठ ही देकर मुझे यों ही मनाया कर।
अभी अवशेष है जीवन बहाकर प्रेम की धारा
भुवन में है अभी शुभ कर्म पगअपना बढ़ाया कर ।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी