गांवों में
आधार छंद लावणी
गीतिका —–
बसे जहाँ के पूर्वज अपने,खेती-बारी गांवों में ।
शहरी जीवन भोगी जीते,बिन बीमारी गांवों में ।
रूप बदलते जोगी देखे,करें दिखावा शहरी हैं,
स्वार्थ रहित कर्मठ साधक जन,दिखते भारी गाँवों में ।
ज्ञान क्षेत्र में सबसे आगे,पुण्य पंथ उच्च विचारी,
विद्या धन से नहीं रहेगी,अब लाचारी गांवों में ।
वस्त्र विलीन स्वदेशी सुंदर,छद्म कृत्य बढ़ा विदेशी,
है बची हुई मर्यादा अपनी,नहीं उघारी गांवों में।
नित नित चर्चा नयी चुनावी,नहीं शांत मन अपना है,
जगी चेतना बढ़े विवेकी,अब की बारी गांवों में ।
डॉ प्रेमलता त्रिपाठी