क्यों ? उदास हम!
गीतिका —
मात्रा= 30 -14,16 पर यति
समांत – आरे, अपदांत
घनी उदासी छायी क्यों?,क्यों मन मारे बैठें हारे ।
खट्टी मीठी यादों की,खुशियाँ हैं जो बाँह पसारे ।
जहाँ तहाँ थमी हुई हैं,आशाएँ वे कदम भरे अब,
उद्वेलन हो लहर लहर,एक चंद्र सौ बार उतारे ।
क्रम यही जीवन माने,उठते गिरते आहत सुख कर,
श्वांसों में घुल मिल जाते,अंग अंग हर पोर दुलारे ।
आँसू मोती बन उठते,चलते चलते चरण अनथके
समय समय पर बीते पल, देकर जाते बड़े इशारे ।
फिर नूतन करना हमको,मिटा दूरियाँ आगे बढ़ना,
कुछ खोने सब पाने हित,प्रेम जलाकर दीप सँवारे ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी