“कौन द्वार पर,आया”
“कौन द्वार पर आया”
गीतिका —
जाग उठी तन तंद्रा टूटी,सहसा मन घबराया ।
रात सलोनी बीत चली अब,कौन द्वार पर आया ।
नीरव सी है सकल दिशाएँ,चली हवा तन छूकर
स्वप्नों की देहरी भी मौन, पर साँकल खटकाया ।
हृदय बीथिका हर्षित तन, धड़कन गीत सुनाये ,
कुहुँक कोयली कर्ण कुहर में,भ्रमर सुमन भरमाया ।
तुम न आये प्रियतम प्रहरी,यादों के दीप जलाती,
सूनी सेज सँवारूँ साजन,मन दर्पण शरमाया ।
तपन सहा बारूदी तुमनें,मान देश का रखकर,
छाती अरि की दहलाकर,परचम जो लहराया ।
बाट जोहती प्रिया तुम्हारी, सपने जागे मन में,
मिला प्रेम संदेश अचानक,मन कुसुमित हरषाया ।
आधार छंद – सार
मात्रा – 28 16 ,12 पर यति
समांत – आया ,अपदांत
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी