अलख जगाती धूप
आधार छंद दोहा
(13+11 = 24 चरणान्त गुरु लघु 21)
गीतिका —-
ओढ़ लालिमा गिरि शिखर,प्रात करे शृंगार ।
दिशि प्राची मन मोहिनी,कंचन पहने हार ।
मुदित हुआ जनु बाल रवि,कंदुक रहा उछाल,
धाये बालक बृंद सब, लेने खडे़ कतार ।
नयी उमंगों को लिए,बढे़ं युवा दिन-रात.
मुठ्ठी में आकाश हो,खुशियों की बौछार ।
गगनांचल से नेह की,अलख जगाती धूप।
शीत व्याधि संघात से,बचें सभी नर-नार
भूख,ग़रीबी यातना, रोटी की अरदास,
पड़े दीन असहाय का,धरा-गगन घर बार ।
खपा चलीं हैं पीढियाँ,अपने पन का मंत्र,
आस भरे आकाश का,दाता पालन हार ।
नीली छतरी के तले, जीवन के हर रूप,
शून्य; नहीं ये प्रेम नभ,समझो सब विस्तार।
***************डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी