“बजट आया “
! बजट आया !
है दशा कैसी हमारे देश की ।
क्या कहेंगे हम कथा परिवेश की ।
आम हो या खास मंथन हो रहा,
लाभ किसको है मिला आवेश की।
है जवानों या किसानों की मदद,
हम करें पूँजी कहाँ निविशेष की ।
दंभ भरते हैं सदा हम भारती,
अर्थ जीवन रह गया अनिमेष की ।
है नहीं चिंतन गरीबी दीन का,
छीन करते वे निवाले क्लेश की ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी