है मसीहा कौन ?
छंद गीतिका
मापनी – 2122 2122 2122 212
मानते हैं जुर्म का चारो तरफ है जो़र अब ।
है मसीहा कौन देखे आँसुओं के कोर अब ।
अस्मिता लुटती जहाँ पर एक बारी जानिए,
कर जिरह हर बार छीने हर गली हर छोर अब ।
कर रहे अपराध मिलकर वे सभी हैं प्रति प्रहर,
व्यर्थ करतें है अमानी रात काली भोर अब ।
भीत जनता में अदालत से निराशा जान लें ,
वादियों प्रति वादियों में हो रही बस शोर अब।
फर्ज अपना गर निभाते कर चलें हम देश हित,
राह बेमानी छले बिन सत्यता हर पोर अब ।
जुर्म करने से बडी़ है जुर्म सहना भी ख़ता,
दें मिसालें लाख हम सब दर्द ये घनघोर अब ।
प्रेम जग में त्याग अर्पण एक दूजे में सधे,
बाँधते रिश्ते न जाने कौन सी हो डोर अब ।
—————–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी