मोहनी विभावरी
छंद – चामर
शिल्प विधान- र ज र ज र
मापनी – 212 121 212 121 212
गीतिका
मोहनी विभावरी अनूप ये लुभाविनी,
चंद्र तारिका सजी लगे पुनीत यामिनी ।
व्योम से चली परी निहारिका बिखेरती,
चूमती कपोल को फुहार हीर चाँदनी ।
अंग अंक में भरी तुषार बूँद पाँखुरी,
लोरियाँ सुना रहीं सुहास संग रागिनी ।
पंथ को निहारती सजा सुदीप-मालिका
दूर देश जा बसे पिया प्रिया वियोगिनी,
प्रेम गीत गा रही स्वछंंद छंद सी निशा,
साँवरी सुहावनी सनेह स्रोत स्वामिनी ।
———————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी