“मूरत बसी प्रीतम नयन”
हरिगीतिका 28 मात्रा,( मापनी युक्त मात्रिक)
मापनी – 2212 2212 2212 2212
समान्त- आर, पदान्त- हो
गीतिका-
राधे सहित कृष्णा कहें पूजन करें अविकार हो ।
मूरत बसी प्रीतम-नयन सुंदर वही शृंगार हो ।
साहस भरे सतकामना उन्वान दें सार्थक डगर,
पावन चुनें वे कर्म पथ जिसमें सतत उपकार हो ।
आनंद जीवन का तभी होवे न विचलित मन कभी,
भूलें नहीं हित साधना संकल्प पथ सुविचार हो ।
कंपित शिशिर,हेमंत ऋतु देकर मधुर मधुमास दे ,
सुख-दुख सदी स्वागत करे हो जीत या के हार हो ।
शाखा मृगों की भाँति नर्तन कर रही जग चेतना,
पल में बदलती राह अपनी झूठ सच या सार हो ।
खुशियाँ सुहानी पास अपने आज भी यदि ढूँढिए,
अभिमान को तज दीजिए मन प्रेम का आगार हो ।
————————-++++++डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी