माँ
आधार छंद- गीतिका
मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा गालगा
समान्त – आर, पदांत – माँ
ज्योति हाथों में लिए मैं तो खड़ी हूँ द्वार माँ ।
गीत भावों का सुनाऊँ तू उसे स्वीकार माँ ।
हे जगत जननी सहारा मान दो मुझको सदा,
चाहिए तेरा मुझे नित प्रीति का उपहार माँ।
सुन पुकारे दीन की चहुँदिक छिड़ा संग्राम है,
लो शरण में आज कर दो दुष्ट का संहार माँ ।
सिंह की करके सवारी पापियों का नाश कर,
हो नहीं सकता तुम्हारे बिन सुखी संसार माँ ।
लाल चूनर माथ बिंदिया नैन बरसे प्रीति जो,
रूप गौरी स्नेह की धारो वही शृंगार माँ ।
कर रही विनती तुम्हारी दास मैं बन के सदा,
दो अमर वरदान वीरों को यही मनुहार माँ ।
देश की माटी पुकारे पीर मन की जागती,
रत्न ऐसे देश हित हों माँगती संस्कार माँ ।
प्रेम को सद्भाव को जग ने भुलाया आज है,
मिट सके मतभेद दो आनंद की बौछार माँ ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी