भव बंधन
छंद – तमाल (सम मात्रिक )
शिल्प विधान — चौपाई +गुरु लघु (16+3=19) अंत में यति ।
गीतिका
प्रभु करना मुझको भव बंधन पार ।
हँस हँस पहनूँ मैं काँटों का हार ।
हठी नहीं छूटे तन-मन व्यामोह,
पग – पग पकड़े यह तृष्णा संसार ।
लुटा दिया अनुपम जीवन अनमोल,
शनैः शनैः रीता घट यौवन सार ।
स्नेह सिक्त भावों से नम अभिराम,
पल में पलकें देती सब कुछ वार ।
प्रेम पृष्ट पर लिखती हूँ संदेश,
मूक नहीं कोमल प्राणों का तार ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी