” बेटियों को मान दें “
प्रदत्त छंद – ‘रूपमाला’
(मापनीयुक्त मात्रिक – 24 मात्रा)
गीतिका :-
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खुद परखना सीखिए मंजिल मिलेगी खास ।
राह अपनी हम चुनें लेकर चलें विश्वास ।
शृंखला छोटी बडी़ ये कर्म का संकेत,
बस समय को मानिए जिसके रहें हम दास ।
लें युवा संकल्प होगा शीश उनके ताज,
दो दुआएँ आज फिर रचना उन्हें इतिहास ।
बेटियों को मान दें जो दो कुलों की शान,
ज्ञान से सम्मान से देकर उन्हें उल्लास ।
है परीक्षा की घडी अब मानिए मत हार,
योग्यता का मान हो टूटे नहीं बस आस ।
छद्म या आतंक से जीवन बनाते नर्क,
छीनते हैं चैन मन का खुद नहीं आभास ।
घात या प्रतिघात से बनता नहीं जन श्रेष्ठ,
प्रेम का संसार निर्मल कर चलें अहसास ।
——————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी