खिली कौमुदी
आधार छन्द ‘शक्ति’
सदी से यही गीत गाया गया ।
लिखे लेखनी जो न जाया गया ।
लकीरें बडी़ या कि छोटी रहीं,
जिन्हें भाग्य लेखा बताया गया ।
पढा़या लिखाया किया जो सही,
जिसे धर्म माना निभाया गया ।
पिता मातु की सीख भूलें जहाँ,
कृपा ईश की ये गँवाया गया ।
कहे मूक वाणी सुने नैन भी,
जहाँ पीर आँसू छिपाया गया ।
खिली कौमुदी गा उठी है निशा,
दुखों का दिखे दूर साया गया ।
सजी यामिनी प्रेम की ये लगी,
इसे मोहनी जो बनाया गया ।
————–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी