आह्वान

गीतिका —- “आह्वान”
लिए मशाल हाथ में,प्रकाश सार दे चलो ।
दिशा विहीन हों युवा,उन्हें विचार दे चलो ।

जियें स्वदेश के लिए,मरे स्वदेश के लिए,
अधर्म कर्म भ्रांति को,मिटा सुधार दे चलो।

मिलें न जीत जो तुम्हें,चिता जले न धर्म की,
पुनीत भावना रहे,विशुद्ध प्यार दे चलो ।

अगम्य भी सुगम्य हो,सुपंथ साधने हमें,
विलासिता मिटे सदा,दिशा निखार दे चलो।

अजान क्यों सुजान हों,न वाटिका उदास सी
कली गली खिली रहे, सदा बहार दे चलो।

न सत्य कारवाँ रुके,न हो हतास भी कभी,
न स्वार्थ हंत रोपना,सुगंध प्यार दे चलो!
डॉ प्रेमलता त्रिपाठी

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