आयो ऋतुकंत सखी री
#गीत पुनि;आयो ऋतुकंत सखी री —–
पुनि;आयो ऋतुकंत सखी री,झूमत म्हारो देश ।
कैसो लागो सरसों आली,प्रीतम के नव वेश ।
साख सखिन सह रार मचावै,
पवनौ लेत हिलोर ।
पतझर पात धरा को चूमै,
सिहरन लागे पोर ।
नव किसलय मुस्कान भरैं जो,
अमराई के थान,
कोयल कूकै बौरें डाली, महके वेणी केश ।
कैसो लागो सरसों आली,प्रीतम के नव वेश ।
भये पलाशी तरुवर सूखे,
केसर महके गोद ।
मदमाती यों कुंज गलिन में
मधुमासी आमोद ।
गुँजत जौ अमराई हरषै,
भरै,कोकिला गान,
भँमरन गुन गुन झंकृत वीणा,मेटत खार कलेश ।
कैसो लागो सरसों आली, प्रीतम के नव वेश ।
तुम पै वारूँ गीत साधना,
अनहद प्रेम बसंत ।
सब रस भीजै अंग हमारो,
अँगिया-पटुका कंत ।
ढोल-थाप सह नाद मृदंगन,
फागुन आयो झूम,
पलक पाँवडे़ बिछा खडी़ हूँ,अपलक मैं उन्मेष ।
कैसो लागो सरसों आली, प्रीतम के नव वेश ।
———————डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी