अभिमान अंतस को छले
आधार छन्द – हरिगीतिका
2212 2212 2212 2212
पदान्त-हो, समान्त-आर
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माँ शारदे आशीष दें, लेखन त्वरित स्वीकार हो ।
छलछद्म को मौका न दें,बस सत्य पर अधिकार हो ।
आया कहीं जो द्वार पर, भूखा नहीं लौटा सकूँ,
इतनी कृपा मुझ पर करें,झोली भरूँ अविकार हो ।
हो #अर्चना अपनी सफल,मन से मिले मनमीत सब ,
मतभेद मन के सब मिटे,प्रतिदिन सरस त्योहार हो ।
अनुकूल हो कर शांत रस,दृग ज्योति भर दे साधना,
माधुर्य पावन कामना, सत लेखनी आधार हो ।
माया जगत व्यापे नहीं,राजीव लोचन राम जी,
रिपुवंश के संहार;हित,प्रभु आपका अवतार हो ।
#पूजा यही है भाव अर्पण,संघर्ष कितना हो कठिन,
सच राह से मुकरें नहीं, मुख-तेज का शृंगार हो ।
भावुक सरल करुणा विकल,याचक रहे मन प्रेम का,
अभिमान अंतस को छले, इससे न कोई पार हो ।
——————डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी