• गीतिका

    “जय भारत”

    “जय भारत” —– रहे झूमता ये तिरंगा हमारा। गगन चूमता ये चमकता सितारा।। सदा मान है ये शान हमारी । दिलों में विराजे आन हमारी । आजाद भारत की ये निशानी, अमर ये रहे वतन का सहारा । रहे झूमता ये तिरंगा हमारा——- छिपी जहाँ शहीदों की शहादत । हिंद की दौलत अपनी अमानत । चंचल हवायें सदा गीत गायें, विश्व पटल पर सजे ये नजारा रहे झूमता ये तिरंगा हमारा——- लिए वीर हाथों फड़कती भुजाएँ। उमगती धड़कन गाती ऋचाएँ । अनुगूँज लेकर जयहिंद भारत, कदम से कदम ; चमन का दुलारा । रहे झूमता ये तिरंगा हमारा——- डॉ0 प्रेमलता त्रिपाठी

  • #गीत

    सत्य सनातन

    #गीत #सत्यसनातन सत्य सनातन नाम ईश का,सबके पालन हार । सनद साधना डगमग है प्रभु;हाथ गहो पतवार । हो मेरे आराध्य देव तुम, चित्तवृत्ति अविनाश । यही कल्पना युग मन्वंतर,अरि को करे निराश । भूल रहें जो वेद ऋचाएँ, वंशज हैं हम आर्य, अविनाशी को कहे सनातन,पंच तत्व में सार । सत्य सनातन नाम ईश का,सबके पालन हार । भेदभाव मतिसुप्त करें जो,क्षुद्र हृदय भयभीत। धीर धरे साधक मन मंदिर,सुखकर ये संगीत । रही सदी से मुखर चेतना, बढ़ा रहे संताप, अंश अनागत समझ न पाये,विकल नीति आधार। सत्य सनातन नाम ईश का,सबके पालन हार । महिमा करें बखान पुण्यपथ,राम-रमा अनिकेत। मर्यादा को लाँघा जिसने, दुष्ट हृदय समवेत। क्षुद्र ग्रहों…

  • #गीत

    “मेरा मन कुंदन कुसुमाकर”

    मेरा मन कुंदन कुसुमाकर” August 2, 2023 #गीत कर देता मन को यों चंचल सागर से उठता कोलाहल ! करतीं गुहार लहरें आकर । मेरा मन कुंदन कुसुमाकर । अंग तरंगित मुखरित मेरे । तनिक निकट आओ तो टेरे । अधर चूम लो धड़के हृदतल । कर देता मन को यों चंचल ! ——- अस्ताचल सुखदा प्रियांशु को । करे नमन अभिनव सुधांशु को । पार्श्व आहटें उठती सुअंक से । खिलतीं बाँछे मिलने मयंक से । उलट-पलट भीगे तन अविरल । कर देता मन को यों चंचल ! ——- लुटा रहा निधि जलधि धीर जो । शचि आकर्षण तोड़ तीर जो । भर लेती निशि पोर-पोर है । आलिंगन…

  • #गीत

    #गीत – मधुर / मनोरम —————————– स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम, मधुशाला जीवन की। किस्से सुख-दुख अनगिन जिसमें, हम प्याला जीवन की । सरगम भरती वीणा समरस, श्वासों में रस घोले । स्याम रंग में लिखे लेखनी कुंज-कुंज में डोले । हँस हँस मिलना है अनंत में, जप माला जीवन की । स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की। पीड़ा मन की मुक्ता माणिक, शब्द शब्द रचवाए । जलना खपना इस दीर्घा में, मंचन जगत लुभाए । संचालक बनना तो केवल, मद हाला जीवन की । स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की। आज नहीं तो कल सच होगा, कुछ हारे कुछ जीते । खींची रेखा मिली जुली पर, कितने…

  • #गीत

    “मधुशाला जीवन की”

    गीत – मधुर / मनोरम —————————– स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम, मधुशाला जीवन की। किस्से सुख दुख अनगिन जिसमें, हम प्याला जीवन की । गुन गुन करती वीणा समरस, श्वासों में रस घोले । स्याम रंग में लिखे लेखनी कुंज-कुंज में डोले । हँस हँस मिलना है अनंत में,जप माला जीवन की । स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की। पीड़ा मन की मुक्ता माणिक, शब्द शब्द रचवाए । जलना खपना इस दीर्घा में, मंचन जगत लुभाए । संचालक बनना केवल तो, मद हाला जीवन की । स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की। आज नहीं तो कल सच होगा, कुछ हारे कुछ जीते । खींची रेखा मिली जुली पर,…

  • #गीत

    #शिवा #शाम्भवी

    #शिवा #शाम्भवी #करिए #अर्चन लहर लहर तट रहा झकोरे, घूम रहा तूफान निराला । घूम रहा तूफान —– फँसा बटोही नगर डगर तक बना हुआ हैवान निराला । बना हुआ हैवान—- विफर पड़ी आक्रोशित लहरें शिवा शाम्भवी करिए अर्चन । जनधन की भारी है चिंता, त्राहि मचाये ये परिवर्तन । भृकुटि तानकर खड़ी आपदा, लेना है संज्ञान निराला । लेना है संज्ञान ——- शक्ति साधना अपनी करनी अनहोनी को रोके जैसे । स्वर्ण अक्षरों में लिख जाता, सिद्ध कामना होती कैसे । विवश करे यह पथ दुरूह पर होगा अनुसंधान निराला । होगा अनुसंधान —— शिवताण्डव का भान नहीं, सुन लो भस्मासुर अपघाती। अरे आसुरी माया छलनी, देवभूमि क्या तेरी…

  • #गीत

    केसर

    #गीत पथरीले पर्णल पर पगली, परवश सोई प्राण पियारी । खिली कली ज्यों धूप सुहावन, हुई यौवना केसर क्यारी । पलके खोले तो बस देखे, लाज भरी बाँकी चितवन से । जीवट जड़वत रही जोगिनी, सहमे दृग केवल विपणन से । क्षुब्ध तापसी कुटिल काम से,झेल रही अनगिन दुश्वारी । खिली कली ज्यों धूप सुहावन,हुई यौवना केसर क्यारी । ————–हुई यौवना केसर क्यारी । कशमीरी परिचय दुनियावी , कौन हृदय की पीड़ा जाँचें । महक उठे निष्कंटक पथ पर, शुचित हृदय में सबको राँचे । ध्वस्त हुई किंजल्क कल्पना,कलझे क्यों कमनीय कुँआरी । खिली कली ज्यों धूप सुहावन,हुई यौवना केसर क्यारी । ————–हुई यौवना केसर क्यारी । बीते पल अध्याय…

  • #गीत

    “शृंग पार से आया न्यासी”

    —#गीत मेघदूत यायावर लेकर, खुशियों का संदेश। शृंग पार से आया न्यासी,सुखद लगे परिवेश । श्वेत-श्याम में उलझे नैना,कजरी के शृंगार । चहुँदिक डोले बादल छौने,क्या मधुबन क्या थार । दूब दूब पर मोती मानिक,भरे धरा के गोद, पाकर आँचल को हुलसाये, अम्बर से सित धार । उमड़ घुमड़ नभ से कजरारी, रही सँवारे केश । ————-सुखद लगे परिवेश ————- सावन-भादों की हरियाली,चंचल लगे अधीर । घन घोर घटा घननाद घने, चमके चपला तीर । तीज सावनी हर हर बम बम,शिव भक्तों के धाम, पर्व सुखद हो रक्षाबंधन, कवच हमारे वीर । नभ से आतुर चंदा झाँके,चैन नहीं लवलेश । ————-सुखद लगे परिवेश ————- सरस हो उठी बोझिल अवनी,जन-जन में…

  • #गीत

    ढूँढें सुरमेदानी

    #गीत सखी बावरी आई बरखा, खेत खेत अँखुआए। रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए। कटितट लेकर रस गागर को, कजरी गाये गुन गुन । बनी रागिनी सजल संगिनी पाँव पैजनी रुनझुन । नहा रही मतवाली बदरी,भीगेअम्बर बलखाए। रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए। साँझ हुई ज्यों चमके जुगनू, ढूँढे सुरमेदानी, । लाल हुई ज्यों अँखियाँ दिशि की मिले नहीं अभिमानी। दादुर झींगुर मीत बने सब,झंकृत ताल सुनाए। रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए। चंचल मन नभ से भूतल तक देख हुई छवि श्यामल । रात अषाढ़ी पूनम ढलके, विरहन के बन काजल । हुई बावरी तन-मन भीगे, पलकें रही बिछाए । रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए। डॉ .प्रेमलता त्रिपाठी

  • #गीत

    बँधी डोर से डोर

    बँधी डोर से डोर -गीत—————— कल आज हमारे हाथों में बँधी डोर से डोर हमारे —- हाथों में । जीवन नैया खेवन वाले । जड़वत हैं क्यों चेतन वाले । मना रहे त्योहार अगर तो मिली साँझ से भोर हमारे — हाथों में । सोच लिखूँ अफसाने नगमें । दौड़ रही श्वांसें रग-रग में । बेतार जुड़े हम सब देखें, धड़के हिय पुरजोर हमारे — हाथों में । ‘लता’ प्रेम में घुल कजरारी । राह मुझे देती उजियारी । पर्व ईद या जले होलिका, धूप – छाँव हर कोर हमारे हाथों में । ——–डॉ प्रेमलता त्रिपाठी

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